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लेखक -विपुल @exx_cricketer

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भारत में क़ानून व्यवस्था का अधिकार राज्यों को दिया गया है |पूर्व लेख प्रशासन व्यवस्था -उत्तर प्रदेश में इस बारे में बता चूका हूँ |न पढ़ा हो तो पढ़ लें |लिंक नीचे है |

प्रशासन व्यवस्था -उत्तर प्रदेश

स्वाभाविक बात है कि प्रशासन की तरह पुलिस व्यवस्था भी राज्य स्तर पर पर ही चलती है |फिर कह रहा हूँ ,इस विषय पर आप लोगों को कुछ बताना सूरज को दिया दिखाना होगा ,पर ये जानकारी मैं फिर एक बार सबके सामने  मैं फिर एक बार सबके सामने रख रहा हूँ |जो लोग नहीं जानते उनको आसानी रहेगी |इस लेख का youtubeवीडियो भी बनाया है,जिसका लिंक नीचे की बटन में है |कृपया नए टैब में खोलें इस लिंक को |

लेख का youtube लिंक

सबसे ऊपर से शुरू करते हैं |राज्य का मुखिया मुख्यमंत्री ही होता है|पुलिस गृह विभाग के अंतर्गत आती है |इस गृह विभाग का मुखिया गृह मंत्री होता है ,जिसे एक तरह से प्रदेश शासन में मुख्यमंत्री के ठीक बाद नंबर 2 का शक्तिशाली व्यक्ति माना जाता है |इस विभाग का का काम गृह सचिव देखता है ,जो एक सीनियर आई ए एस अफसर होता है |हम नीचे प्रदेश के सर्वोच्च पुलिस अधिकारी से प्रारम्भ करके नीचे की कड़ी तक जायेंगे |बस एक बात पहले ही यहाँ कहना चाहूँगा कि पिछले लेख की तरह विभिन्न अधिकारियों के कार्यों का विवरण विस्तार से नहीं होगा ,क्योंकि हम और आप सभी जानते हैं की सिपाही से लेकर डीजीपी तक पुलिस का एक ही काम होता है |जनता की सुरक्षा करना ,क्षेत्र में शान्ति व्यवस्था कायम रखना क्षेत्र को अपराधमुक्त रखना और अपराधियों को पकड़ के उन्हें न्यायालय से सजा दिलवाना |

पुलिस ढांचा (क्षेत्र अनुसार )

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सभी अधिकारियों के बारे में बताने के पहले आपको मोटा मोटा ढांचा बता दूं पुलिस व्यवस्था का |सबसे ऊपर प्रदेश होता है |क़ानून व्यवस्था बनाए रखने के लिए प्रदेश को विभिन्न जोन में बांटा जाता है |प्रत्येक जोन में 2 या 2 से अधिक रेंज होती हैं |प्रत्येक रेंज में 2 या 2 से अधिक जिले होते हैं |इन जिलों के अंतर्गत सर्किल होते हैं।एक सर्किल में कई थाने होते हैं | हर थाना विभिन्न हलकों या चौकी क्षेत्र में विभाजित होता है |ये हलके ग्रामों को मिलाकर बने होते हैं |एक हलके में औसतन 20 से 50 राजस्व ग्राम तक हो सकते हैं | जैसा कि आपको प्रशासन व्यवस्था -उत्तर प्रदेश लेख में बताया ही था कि शासन की सबसे छोटी इकाई राजस्व ग्राम है |पुलिस रेंज लगभग राजस्व प्रशासन की मण्डल या कमिश्नरी के बराबर होती है ,तथा पुलिस के जिले भी वही होते हैं जो राजस्व प्रशासन के होते हैं |इस तरह से डी आई जी को लगभग मण्डलायुक्त या राजस्व कमिश्नर तथा एसएसपी को लगभग जिलाधिकारी के समकक्ष मान सकते हैं |ये मैं उन मण्डल तथा जिलों के बारे में बता रहा हूँ जहाँ पुलिस कमिश्नर व्यवस्था लागू नहीं है |पुलिस कमिश्नरी के बारे में सबसे बाद में बात करेंगे

पुलिस महानिदेशक (डीजीपी)

पूरे प्रदेश की पुलिस फोर्स का मुखिया डायरेक्टर जनरल ऑफ पुलिस (डीजीपी) या पुलिस महानिदेशक होता है।ये प्रदेश का वरिष्ठतम आईपीएस अफसर होता है।ये प्रदेश पुलिस व्यवस्था में सर्वोच्च होता है तथा मुख्यमंत्री का सलाहकार होता है।पूरे प्रदेश में डीजीपी का मात्र एक ही पद होता है ।पूरे प्रदेश की पुलिस व्यवस्था का सम्पूर्ण काम देखना इसका काम है और प्रदेश मे शान्ति व्यवस्था कायम रखने ,अपराधियों को पकड़ के सज़ा दिलवाने की ज़िम्मेदारी इसी की होती है ,जिसे ये अपने अधीनस्थ अधिकारियों से पूरी करवाता है।

अपर पुलिस महानिदेशक (एडीजी) और ज़ोन

डीजीपी के ठीक नीचे एडीजी या अपर पुलिस महानिदेशक की पोस्ट होती है।ये सीनियर आईपीएस होते है तथा प्रदेश की कानून व्यवस्था बनाये रखने में डीजीपी की मदद करते हैं ।उत्तर प्रदेश में एडीजी के कई पद सृजित हैं, जैसे एडीजी होमगार्ड, एडीजी पीएसी, एडीजी सीआइडी ,एडीजी रेलवे ,लेकिन इन सब में 9 एडीजी प्रमुख हैं ।एक एडीजी कानून व्यवस्था (एडीजी लॉ एंड आर्डर ) और प्रदेश के 8 पुलिस जोन पर नियुक्त एडीजी ।उत्तर प्रदेश 8 पुलिस जोन में विभक्त है ।जिनका वर्णन नीचे है।मतलब डीजीपी के नीचे प्रत्येक जोन पर एक एडीजी होता है।जो सीनियर आईपीएस होता है।

डीआईजी (पुलिस उपमहानिरीक्षक ) और रेंज

उत्तर प्रदेश का प्रत्येक पुलिस जोन 2 या 2 से अधिक पुलिस रेंज में बांटा गया है।प्रत्येक रेंज पर एक डीआईजी की नियुक्ति होती है।ये भी सीनियर आईपीएस होता है और एडीजी के अधीन कार्य करता है।प्रत्येक रेंज में 2 या 2 से अधिक जिले हो सकते हैं।ये लगभग राजस्व प्रशासन के मंडलायुक्त या कमिश्नर के समकक्ष माना जाता है।रेंज में आने वाले विभिन्न जिलों के एसएसपी / एसपी इसके अधीन होते हैं ।हालांकि जिले में एसएसपी को डीआईजी से ज़्यादा शक्तियां हैं।उत्तर प्रदेश के पुलिस ज़ोन और रेंज की सूची नीचे देखें ।उत्तर प्रदेश में कुल 8 पुलिस ज़ोन और 18 पुलिस रेंज हैं।सभी पुलिस जोन ,पुलिस रेन्ज और उन पुलिस रेन्ज के अंतर्गत आने वाले पुलिस जिलों की सूची देखें।

जोन रेन्ज जिला
1 -आगरा आगरा आगरा ,फिरोजाबाद ,मैनपुरी,मथुरा
अलीगढ़अलीगढ़,एटा ,हाथरस,कासगंज
2-प्रयागराज प्रयागराज प्रयागराज ,फतेहपुर,कौशाम्बी,प्रतापगढ़
चित्रकूटधामचित्रकूटधाम,बांदा,हमीरपुर ,महोबा
3-बरेली बरेली बरेली ,बदायूं ,पीलीभीत ,शाहजहांपुर
मुरादाबाद मुरादाबाद ,अमरोहा,बिजनौर,रामपुर,संभल
4 -कानपुरझाँसी झाँसी ,जालौन,ललितपुर
कानपुर औरैया,इटावा,फतेहगढ़,कन्नौज,कानपुर नगर, कानपुर देहात
5-गोरखपुर गोरखपुर गोरखपुर ,कुशीनगर ,देवरिया, महाराजगंज
बस्ती बस्ती ,संत कबीर नगर ,सिद्दार्थ नगर
देवीपाटन बहराइच ,बलरामपुर,गोंडा,श्रावस्ती
6-लखनऊलखनऊहरदोई,खीरी,लखनऊ,रायबरेली,सीतापुर,उन्नाव
फैजाबाद फैजाबाद ,अम्बेडकर नगर ,अमेठी,बाराबंकी,सुल्तानपुर
7-मेरठ मेरठ बागपत ,बुलंदशहर,गौतम बुद्ध नगर ,गाज़ियाबाद हापुड़ ,मेरठ
सहारनपुर मुजफ्फरनगर ,सहारनपुर ,शामली
8-वाराणसी आज़मगढ़ आज़मगढ़ ,बलिया,मऊ
मिर्ज़ापुर मिर्ज़ापुर ,संत रविदास नगर ,सोनभद्र
वाराणसी वाराणसी ,चंदौली,गाजीपुर,जौनपुर

एस एस पी(वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक ) /कप्तान

प्रत्येक पुलिस रेंज में दो से अधिक पुलिस जिले होते हैं ,जिन पर एसएसपी या वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक नियुक्त होता है।इसे पुलिस कप्तान भी कहते हैं।ये आईपीएस होता है।पुलिस प्रशासन की दृष्टि से यह पोस्ट सबसे ज़्यादा महत्वपूर्ण पदों में से एक है ।छोटे जिलों में वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक या एसएसपी की जगह एसपी की नियुक्ति होती है।बड़े जिलों में एसएसपी के नीचे तमाम एसपी हो सकते हैं, जैसे एसपी साउथ, एसपी वेस्ट, एसपी ट्रैफिक आदि।जिला स्तर पर कानून व्यवस्था बनाये रखने के लिए एसएसपी ही ज़िम्मेदार है।जैसे जिले में कलेक्टर सर्वेसर्वा है ,लगभग वही रुतबा जिले के पुलिस कप्तान का भी होता है ।एक जिले के अंतर्गत कई पुलिस थाने होते हैं।उन पुलिस थानों के अंतर्गत पुलिस चौकियां।जिले के सारे थानों के थानेदार और चौकी इंचार्ज की नियुक्ति यही करता है।जिले के किसी भी पुलिस अधिकारी /कर्मचारी के ट्रांसफर, पोस्टिंग का विशेषाधिकार इसे प्राप्त है।जिले की सारी पुलिस मशीनरी इसी के अनुसार और इसी के आदेश से चलती है

पुलिस अधीक्षक (एसपी)

जैसा कि ऊपर बताया जा चुका है ,बड़े जिलों में कप्तान के तौर पर एसएसपी होता है ,छोटे जिलों में एसपी ही सर्वेसर्वा होता है।ये आईपीएस होता है।कानपुर ,लखनऊ जैसे महानगरों में एसएसपी के अंतर्गत कई एसपी हो सकते हैं।जैसे एसपी साउथ, एसपी वेस्ट ,एसपी ट्रैफिक आदि ।छोटे जिले का एसपी और महानगर के एसएसपी का कार्यक्षेत्र एक जैसा ही है ,बस छोटे जिलों में केवल एक ही आईपीएस होता है जो एसपी या पुलिस अधीक्षक होता है।

ए एस पी (अपर पुलिस अधीक्षक )

ये सीनियर पीपीएस अफसर होते हैं।ये जिले स्तर का पद है ।एक जिले में एक से अधिक ए एस पी नियुक्त हो सकते हैं।इनका काम कानून व्यवस्था बनाये रखने में एसएसपी तथा एसपी का सहयोग करना है।हालांकि कई जगह इनका रुतबा कप्तान के ही बराबर होता है।

सीओ /क्षेत्राधिकारी /डीएसपी

यूपी में ये पद सीओ के नामसे ही जाना जाता है ।डीएसपी शब्द नहीं सुनेंगे।जैसे एक प्रशासनिक जिले में कई तहसीलें होती हैं ,वैसे ही एक पुलिस जिले में कई पुलिस क्षेत्र होते हैं ,जिन्हें सर्किल कहते हैं ।इन पुलिस सर्किल पर सर्किल ऑफिसर या क्षेत्राधिकारी की नियुक्ति होती है।ये पीपीएस अफसर होता है।ग्रामीण क्षेत्रों की तहसीलों में एक पुलिस क्षेत्र लगभग वही होता है जो तहसील क्षेत्र होता है। कानपुर ,लखनऊ जैसे महानगरों में एक तहसील में एक से ज़्यादा पुलिस क्षेत्र होते हैं।ये सीओ अपने क्षेत्र की कानून व्यवस्था बनाये रखने के लिये जिम्मेदार होता है।एक सर्किल में दो1 तीन थाने आते हैं।वैसे प्रोटोकॉल की दृष्टि से सीओ का पद थानेदार से बड़ा है, लेकिन हकीकत में सीओ को बहुत कम अधिकार हैं।ये मुख्य तौर पर जांच अधिकारी बन के रहता है।थानेदार इन्हें भाव नहीं देते क्योंकि थानेदारों की पोस्टिंग कप्तान करता है।दहेज उत्पीड़न और एस सी /एस टी एक्ट के मामलों की जांच केवल सीओ ही करता है।ये भी तीन स्टार लगाता है ,लेकिन इसके और इंस्पेक्टर के स्टार में अंतर ये है कि सीओ के स्टार चांदी के कलर के होते हैं ,इंस्पेक्टर के पीतल के होते हैं।

एस एच ओ /कोतवाल /थानेदार/पुलिस इंस्पेक्टर/पुलिस निरीक्षक/प्रभारी निरीक्षक और थाना

पूरे पुलिस विभाग में सबसे महत्वपूर्ण पद यही है आम जनता के लिये।इसी का सीधा साबका जनता से पड़ता है ,बाकी सारे अधिकारियों का जनता से सीधा संपर्क नहीं होता है।एक पुलिस जिला एक से अधिक पुलिस सर्किल में बंटा होता है और हर पुलिस सर्किल में कई थाने होते हैं।हर थाने का प्रभारी एक पुलिस इंस्पेक्टर रैंक का अफसर होता है ,कई बार इंस्पेक्टर रैंक के अधिकारी के थाने में न होने पर कोई सीनियर सब इंस्पेक्टर भी थानेदार बनाया जा सकता है।ये तीन पीले स्टार और पी कैप लगाता है।थाना क्षेत्र के अंतर्गत कानून व्यवस्था बनाये रखने की सारी जिम्मेदारी थानेदार की है ।अपराध होने से रोकना ,अपराधियों को पकड़ना ,आम जनता की शिकायत सुनना, एफआईआर लिखना ,प्रशासन के आदेशों का पालन करना, करवाना ,ये सब थानेदार की ज़िम्मेदारी है।एक विशेष बात ये है कि पुलिस इंस्पेक्टर या थानेदार की सीधी भर्ती नहीं होती ।सीधी भर्ती सब इंस्पेक्टर या दरोगा के पद पर होती है जो एक प्रोमोशन के बाद इंस्पेक्टर बनता है ।तहसीलदार और थानेदार ,सीधी भर्ती के पद नहीं हैं ,क्योंकि ये आम जनता से सीधे जुड़े हैं ।यहाँ अनुभव की ज़रूरत होती है।केवल बॉलीवुड फिल्मों में आपको एसएचओ नौजवान मिलेंगे ,असलियत में एसएचओ या कोतवाल हमेशा बहुत घाघ और खुर्राट व्यक्ति मिलेंगे जो आपसे केवल आधे घण्टे के परिचय के बाद किसी ज्योतिषी से बढ़िया आपका भूत भविष्य और वर्तमान बता देंगे ।मज़ाक नहीं कर रहा, कभी ट्राय कर लेना।सरकारी व्यवस्था ऐसे ही नहीं चलती। कॉरपोरेट सेक्टर के कसीदे काढ़ने वालों को अंदाज़ ही नहीं है कि तहसील और थाने के लोगों का नेटवर्क और होमवर्क कितना मजबूत होता है ।

चौकी इंचार्ज /हल्का इंचार्ज /दरोगा /सब इंस्पेक्टर/पुलिस चौकी

एक पुलिस थाना कई हलकों में विभक्त होता है ,जैसे हल्का नंबर 1 ,हल्का नंबर 2 आदि।कुछ हलकों में पुलिस चौकी स्थापित होती है ।इन पुलिस चौकियों में एक सब इंस्पेक्टर की नियुक्ति होती है ,जिसे आम बोलचाल में दरोगा कहते हैं।ये दो स्टार और गोल टोपी लगाता है ।अपने हल्के में कानून व्यवस्था बनाये रखने की ज़िम्मेदारी संबंधित चौकी इंचार्ज या दरोगा की है।कुछ चौकियां रिपोर्टिंग चौकी होती हैं जहां अपराधों की एफआईआर दर्ज हो सकती है।कुछ चौकियां केवल कानून व्यवस्था के लिये बनाई जाती हैं ,यहाँ एफआईआर नहीं दर्ज हो सकती।यहाँ की एफआईआर संबंधित थाने में दर्ज होती है।जिन हलकों में चौकी नहीं बनी होती ,वहां नियुक्त दरोगा या हल्का इंचार्ज संबंधित थाने से ही अपना आवश्यक काम निपटाते हैं।अपराधों की एफआईआर दर्ज होने के बाद विवेचना दरोगा का ही काम होता है।हल्के से संबंधित जनता के विभिन्न प्रार्थना पत्रों की जांच भी यही करते हैं इन्हें न्यायालयों में भी केस के सम्बंध में जाना पड़ता है।आम जनता का साबका इनसे शायद कोतवाल से भी ज़्यादा पड़ता है।इनकी सीधी भर्ती होती है।

प्रधान आरक्षी /हेड कॉन्स्टेबल

आरक्षी या कॉन्स्टेबल या सिपाही के एक प्रोमोशन के बाद उसे हेड कॉन्स्टेबल की पोस्ट मिलती है ।ये पद सिपाही से ऊपर और सब इंस्पेक्टर से नीचे होता है।हेड कॉन्स्टेबल अक्सर थाने में ही नियुक्त होते हैं।चौकी नहीं भेजे जाते।थाने में ही हेड मोहर्रिर या मालखाना मोहर्रिर का काम देखते हैं ।इनकी सीधी भर्ती नहीं होती।

आरक्षी /बीट सिपाही /कॉन्स्टेबल

हर दरोगा के साथ उसके हल्के या चौकी पर दो या दो से अधिक सिपाही नियुक्त होते हैं।इनक सीधी भर्ती होती है।ये हल्का में शान्ति व्यवस्था बनाये रखने में ,प्रार्थना पत्रों की जांच, आपराधिक केसों की विवेचना में हल्का इंचार्ज की मदद करते हैं।इनके बीट क्षेत्र को अपराध मुक्त रखना इनकी ज़िम्मेदारी मानी जाती है ।इन्हें रात में अपने क्षेत्र में नियमित तौर पर गश्त लगानी होती है।कुछ सिपाही कार्यालय सम्बन्धी कामों के लिये थाने में ,सीओ ऑफिस में तथा कप्तान ऑफिस में भी नियुक्त होते हैं।

पुलिस कमिश्नर व्यवस्था

ऊपर लिखी सारी व्यवस्था उन जिलों और मंडलों की है जहाँ पुलिस कमिश्नर व्यवस्था लागू नहीं है।योगी सरकार ने कानपुर और गोरखपुर जैसे जिलों मे पुलिस कमिश्नर व्यवस्था लागू की है।दरअसल पुलिस कमिश्नर व्यवस्था में आईपीएस को आईएएस के ऊपर शक्ति और मजिस्ट्रेट पॉवर मिल जाती है ,इस वजह से आईएएस पुलिस कमिश्नर व्यवस्था खास पसन्द नहीं करते।

पुलिस कमिश्नर व्यवस्था सर्किल ,थानों ,हलकों और चौकी की व्यवस्था वही रहती है जो ऊपर बताई है ,लेकिन अधिकारियों के नामों और कार्यभारों में थोड़ा अंतर हो जाता है।

पुलिस कमिश्नर एडीजी रैंक का होता है।

उसके नीचे जेसीपी (जॉइंट कमिश्नर ऑफ पुलिस ) होता है जो आईजी /डीआईजी रैंक का होता है।

डीसीपी (डिप्टी कमिश्नर ऑफ पुलिस) एसएसपी रैंक का होता है और एडीसीपी (एडिशनल डिप्टी कमिश्नर ऑफ पुलिस )एसपी रैंक का।

एसीपी ,सीओ की रैंक का होता है।

नीचे फिर थाना व्यवस्था चलती है।

थाना और तहसील शासन व्यवस्था का मूल है, इसे बदला नहीं जा सकता।

रिजर्व पुलिस लाइन

हर जिले में एक रिजर्व पुलिस लाइन होती है ,जहाँ ऐसे पुलिस के अधिकारी/सिपाही रहते हैं ,जिन्हें थाने या चौकी में पोस्टिंग नहीं मिली होती है।लाइन हाजिर सज़ा पाए सिपाही दरोगा भी यहीं भेजे जाते हैं।

थाने की व्यवस्था

थाने में एक हेड मोहर्रिर होता है जो लिखापढ़ी का काम देखता है।एफआईआर रजिस्टर इसी के पास होता है।

एक मालखाना मोहर्रिर होता है जो असलहों की और अन्य सारे थाने के माल ,असलहा वगैरह की देखभाल के लिये जिम्मेदार होता है।इन दोनों मोहर्रिर को दो तीन सिपाही इनके सहयोग के लिए दिए जाते हैं।ये दोनों मोहर्रिर हेड कॉन्स्टेबल होते हैं ।अब हर थाने में एक नया पद हेड कॉन्स्टेबल टेक्निकल का सृजित है ,जो कम्प्यूटर के काम देखता है।इसे भी दो सिपाही मिलते हैं सहयोग के लिये ।

साइबर थाना /साइबर सेल

अब हर जनपद में एक साइबर थाना खुल चुका है जहाँ साइबर अपराधों से संबंधित एफआईआर भी दर्ज होती हैं ,विवेचना भी और कार्यवाही भी।इसी तरह से लगभग हर थाने में एक साइबर सेल भी खुली है।यहाँ साइबर अपराधों से संबंधित शिकायत दर्ज करवा सकते हैं ।एक दरोगा सेल का प्रभारी होता है ,जिसे सहयोग के लिये एक दो सिपाही मिलते हैं।

ट्रैफिक पुलिस

हर जिले में ट्रैफिक पुलिस की व्यवस्था अलग होती है।एसपी ट्रैफिक इसके इंचार्ज होते हैं।ट्रैफिक पुलिस के सिपाही /दरोगा को केवल ट्रैफिक से जुड़े अपराधों से मतलब होता है।क्षेत्र में होने वाले अन्य अपराधों से इनका वास्ता नहीं होता है।

उपसंहार

हर जिले में एक क्राइम ब्रांच होती है,अपराध सुलझाने में माहिर तेज़ दिमाग के अफसरों ,सिपाहियों की भर्ती इसमें होती है।एसटीएफ यूपी पुलिस की ऐसी संस्था है जो अपराधियों का उन्मूलन करने में कामयाब रही है।ये उत्तर प्रदेश स्तर परहै, जिला स्तर पर नहीं।सीबीसीआईडी उत्तर प्रदेश पुलिस की गुप्तचर संस्था है।

बहुत सी बातें हो सकती है,पुलिस का विषय वृहद है।

लेकिन मैं अपनी बात यहीं समाप्त करूंगा।

मेहनत करता हूँ ,अपने लेखों के लिए कि आपको स्तरीय सामग्री पढ़ने को मिले।और आप मुझसे और exxcricketer.com से निराश न हों।आशा है उपरोक्त जानकारी आपके काम की होगी।।इस लेख का youtube वीडियो भी बनाया है,जिसका लिंक नीचे की बटन में है |कृपया लिंक को नए टैब में खोलें |

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लेखक -विपुल

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